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नागपुर में RSS का मुख्यालय, पर कांग्रेस का रहा गढ़, 2014 में नितिन गडकरी के भेदे किले को कायम रख पाएगी BJP?

नागपुर में RSS का मुख्यालय, पर कांग्रेस का रहा गढ़, 2014 में नितिन गडकरी के भेदे किले को कायम रख पाएगी BJP?

Source: Navbharat Times

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय के अलावा महाराष्ट्र का नागपुर संतरों के लिए देश-विदेश में अलग ही पहचान रखता है। अब इसे गडकरी का गढ़ भी माना जाने लगा है। पिछले 10 साल में गडकरी ने गली-मोहल्ले छान मारे और शायद ही ऐसा कोई इलाका बचा हो, जहां उन्होंने काम न किया हो। हालांकि, इस बार गडकरी को चुनौती देने वाले विकास ठाकरे को बिना मांगे ही प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुचन विकास आघाडी ने समर्थन दे दिया है और एमआईएम ने भी उम्मीदवार नहीं उतारा है। गडकरी के लिए यह व्यूह रचना ठीक नहीं मानी जा रही है। सवाल पूछे जा रहे हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार ठाकरे को वंचित के समर्थन देने के पीछे कौन सी शक्तियां खड़ी हैं? एमआईएम के उम्मीदवार न उतारने का कारण क्या है, जबकि बीजेपी के विरोधी आरोप लगाते हैं कि आंबेडकर और एमआईएम बीजेपी की 'बी' टीम है। ऐसे में, नागपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या गडकरी को घेरने के लिए यह चक्रव्यूह रचा गया है?वंचित ने दिया कांग्रेस को समर्थनआंबेडकर की वंचित ने यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा और ओवैसी की पार्टी एमआईएम ने भी उम्मीदवार नहीं दिया है, जबकि कांग्रेस ने आंबेडकर से समर्थन नहीं मांगा था। महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से जानने वाले कहते हैं कि किसके कहने पर वंचित ने कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन दिया है। एमएमआई के उम्मीदवार नहीं उतारने का कारण क्या है, इस पर शक दिल्ली की ओर जाता है। यह बात गडकरी को कचोट रही है, तो कांग्रेस खेमा उत्साहित है।

मायावती की रैली के मायने

बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने भी 11 अप्रैल को नागपुर में एक चुनावी सभा को संबोधित किया। कहने को तो मायावती ने बाबासाहेब आंबेडकर की दीक्षा भूमि से लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरूआत की है, जबकि बसपा का नागपुर में कोई उम्मीदवार नहीं है। देशभर में हुए हाल के कुछ चुनावों में देखा गया है कि बीजेपी के पक्ष में थोक के भाव दलित वोट पड़े हैं। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी दलितों के एक बहुत बड़े वर्ग का झुकाव बीजेपी की तरफ देखा गया। नागपुर में 15 से 20 फीसदी दलित वोटर हैं, जिनमें हिंदू और बौद्ध दोनों हैं। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां दलित बौद्धों का अच्छा-खासा प्रभाव है। ऐसे में, सवाल यह उठ रहा है कि क्या दलित वोट कांग्रेस, प्रकाश आंबेडकर की वंचित और मायावती की बीएसपी के बीच बंट जाएंगे?

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यह है सीट का इतिहासनागपुर में 1925 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय है। फिर भी 2014 तक यहां कांग्रेस का वर्चस्व रहा। पहली बार 1996 में बीजेपी के बनवारी लाल पुरोहित ने चुनाव जीता, लेकिन जीत का जश्न ज्यादा दिन नहीं चला। 1998 में कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार ने पुरोहित को हरा दिया। 2014 में गडकरी ने उपस्थिति दर्ज कराई। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में कांग्रेस-शिवसेना और एनसीपी की महा विकास आघाडी के सत्ता में आने पर स्थानीय निकाय और विधान परिषद चुनाव में बीजेपी को कई झटके लगे, लेकिन बीजेपी की बूथ स्तर पर चुनावी मशीनरी बेहद सक्रिय है। गडकरी ने इन 10 साल में नागपुर को जोड़ने वाली सड़क, एक्सप्रेस-वे, एम्स, आईआईटी, आईआईएम, महाराष्ट्र नैशनल यूनिवर्सिटी जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएं खोली हैं। कहते हैं कि पिछले 10 साल में गडकरी ने नागपुर के विकास के लिए सरकारी खजाने से करीब एक लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

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इस बार गडकरी के सामने कांग्रेस ने इसी क्षेत्र के विधायक विकास ठाकरे को उम्मीदवार बनाया है। विकास नागपुर के मेयर रहे हैं। नागपुर महानगरपालिका में कई साल तक नेता विपक्ष रहे हैं। शहर पर उनकी अच्छी पकड़ है और जिस कुनबी समाज से आते हैं, उस समाज के वोटर्स की संख्या 6 लाख के करीब है। विकास का चुनाव प्रचार करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आए, जबकि गडकरी के चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। वंचित ने जब से कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा की है, तब से गडकरी खेमा अलर्ट मोड पर है। चुनाव प्रचार में गडकरी का पूरा परिवार उतर गया है। गडकरी के व्यावहारिक होने के कारण उनके चुनाव प्रचार के लिए देश के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं।

क्या है जातीय समीकरणनागपुर लोकसभा चुनाव क्षेत्र में 22.23 लाख मतदाता हैं, जिसमें हिंदीभाषी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। करीब साढ़े चार लाख हिंदीभाषी मतदाता है, जिनमें करीब 3 लाख के आस-पास उत्तर प्रदेश, बिहार के हैं। करीब साढ़े 3 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। कुनबी, तेली, दलित के चार-चार लाख के करीब मतदाता हैं। इनमें कांग्रेस के उम्मीदवार ठाकरे कुनबी समाज से हैं। उनका दावा है कि कुनबी, दलित, मुस्लिम और हिंदीभाषी समाज उनके साथ है। तेली समाज के समर्थन का दावा भी ठाकरे करते हैं। दूसरी ओर, गडकरी का दावा करते हैं कि उन्हें सभी समाज का समर्थन हासिल है और वह पिछली बार से ज्यादा वोट हासिल करेंगे। कांग्रेस को और ज्यादा मार्जिन से हराएंगे। गडकरी का मिलनसार स्वभाव उन्हें अन्य नेताओं से कुछ अलग जरूर करता है। जातीय समीकरण साधने के लिए गडकरी ने ओबीसी समाज के विकास के लिए संवैधानिक दर्जा प्राप्त आयोग का गठन में योगदान दिया।